गुजरात में दो चरणों में विधानसभा चुनाव होंगे. पहले चरण में 89 सीटों पर 1 दिसंबर, तो दूसरे चरण में 93 सीटों पर 5 दिसंबर को वोटिंग होगी, जबकि गुजरात चुनाव के नतीजे हिमाचल प्रदेश के साथ ही 8 दिसंबर को आएंगे. मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और चुनाव आयुक्त अनुप चंद्र पांडेय ने बताया कि इस बार 51782 पोलिंग स्टेशन्स पर 4.9 करोड़ वोटर वोट डालेंगे. इस बार गुजरात में 3,24,422 नए वोटर जोड़े गए हैं.
गुजरात में 1995
से बीजेपी सत्ता पर काबिज
गुजरात
में विधानसभा चुनाव से पहले सियासी पारा गरम है. बीजेपी गुजरात की सत्ता को बरकरार
रखने की कवायद में जुटी है और इस बार 182 सीटों में से 160 प्लस का टारगेट रखा है. वहीं, कांग्रेस इस बार बीजेपी को
सत्ता से बाहर करने में जुटी है. इन सबके बीच आम आदमी पार्टी भी तमाम वादों के साथ
दोनों की जगह नया विकल्प बनने के लिए पुरजोर कोशिश में जुटी है.
गुजरात में 2017 में कैसे थे नतीजे?
गुजरात में विधानसभा की 182 सीटें हैं. 2017 में हुए विधानसभा
चुनाव में बीजेपी ने इनमें से 99 पर जीत हासिल की थी. तब कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर देते
हुए 77 सीटें जीती
थीं. अन्य के खाते में 6 सीटें गई थीं. बीजेपी को इस चुनाव में 50% और कांग्रेस
को 42% वोट हासिल
किया था.
सॉफ्ट हिंदुत्व के सहारे AAP
गुजरात में आप अपने 108 प्रत्याशियों को मैदान में उतार चुकी है. इस बार
आप ने खुद को विकल्प के तौर पर भी पेश किया है. और सॉफ्ट हिंदुत्व को सबसे बड़ा
हथियार बनाया है. साथ ही दिल्ली का विकास मॉडल और फ्री की योजनाओं की भी दुहाई दी
जा रही है. चुनावी अभियान के दौरान अभी कुछ दिन पहले अरविंद केजरीवाल ने नोट पर
मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की तस्वीर लगाने की बात कहकर सॉफ्ट हिंदुत्व की राह
पकड़ी है.
कांग्रेस के न नेता दिख रहे और ना ही रणनीति
गुजरात चुनाव के मद्देनजर सभी पार्टियों की
तैयारियां जोरों पर हैं. लेकिन देश की सबसे बड़ी प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस का
अभी तक कुछ अता पता नहीं है. इस बार पार्टी ने नरम रुख अपना रखा है. अब सवाल भी
उठने लगे हैं कि आखिर पार्टी ने हाथ क्यों खड़े कर रखे हैं. बीजेपी की तरफ से जहां
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह, आप की तरफ से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद
केजरीवाल और भगवंत मान जैसे बड़े नेताओं ने मोर्चा संभाल रखा हो वहां कांग्रेस
नदारद क्यों है.
क्या हिन्दू 2002 की बात करने पर बिदक जाते हैं?
क्या वाक़ई ऐसा है कि 2002 के दंगों पर कांग्रेस बात करेगी, तो गुजरात के हिन्दू बिदक जाएँगे और बीजेपी के
पक्ष में लामबंद हो जाएँगे? राजीव शाह कहते हैं, ''कांग्रेस का यह डर वाजिब हो सकता है. मेरा भी मानना है कि गुजरात का शहरी मध्य
वर्ग हिन्दू 2002 के गुजरात दंगे से कन्विंस है. ऐसे में कांग्रेस इसका विरोध करेगी तो यह मध्य
वर्ग बीजेपी के पक्ष में और मज़बूती से लामबंद हो सकता है. लेकिन एक बात यह भी सच
है कि बीजेपी को कांग्रेस इस रणनीति से नहीं हरा सकती है. बीजेपी को हराना है, तो उससे सीधे टकराना होगा. उसी तरह कमोबेश बन
जाने से वह हार जाएगी.''
मुसलमानों का प्रतिनिधित्व
अच्युत याग्निक कहते हैं कि कांग्रेस को तो पहले अपने नेताओं को सैद्धांतिक समझ बढ़ानी चाहिए. कांग्रेस के ज़्यादातर नेताओं को पता नहीं है कि हिन्दुत्व का मतलब हिन्दू धर्म नहीं है. हिन्दुत्व के ख़िलाफ़ बोलना हिन्दू धर्म के ख़िलाफ़ बोलना नहीं है. याग्निक कहते हैं, ''कांग्रेस में ज़्यादातर नेता राइट विंग के भरे हुए हैं.''बीजेपी गुजरात में मुसलमानों को टिकट नहीं देती है जबकि राज्य में क़रीब 10 फ़ीसदी मुसलमान हैं. इसके जवाब में कांग्रेस ने भी मुसलमानों की उम्मीदवारी में कटौती शुरू कर दी. कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में केवल छह मुसलमानों के टिकट दिया था, जिनमें से तीन को जीत मिली थी. दरियापुर से कांग्रेस के विधायक गयासुद्दीन शेख़ ने हाल ही में मांग की थी कि आबादी के लिहाज से मुसलमानों के कम से कम 18 टिकट मिलने चाहिए, लेकिन पार्टी इतना नहीं दे पा रही है तो कम से कम 10-11 तो दे. रघु शर्मा से पूछा कि कांग्रेस मुसलमानों को आबादी के लिहाज से टिकट क्यों नहीं दे रही है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ''पार्टी टिकट जीतने वाले उम्मीदवारों को देती है.'' मुसलमानों को टिकट नहीं देने के सवाल पर अब तक बीजेपी यही तर्क देती थी. अक्तूबर महीने में गरबा के दौरान पत्थर फेंकने के मामले में कुछ मुस्लिम युवकों को सार्वजनिक रूप से सड़क पर बाँधकर पीटा गया था. कांग्रेस की प्रदेश इकाई इस पर ख़ामोश रही, लेकिन जमालपुर खेडिया से कांग्रेस विधायक इमरान खेड़ावाला और दरियापुर से पार्टी विधायक गयासुद्दीन शेख़ ने इसका विरोध किया था. खेड़ावाला ने कहा था कि इस मामले पर कांग्रेस की चुप्पी से अल्पसख्यंकों के मन में चिंता बढ़ी है.
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